Monday, January 03, 2011

क्रांतीज्योती - सावित्रीबाई फुले

१८०  वर्षापूर्वी   स्त्री  – पुरुष  समता  आणि  सामाजिक  न्यायासाठी  महात्मा  ज्योतिबा  फुले  यांच्या  सोबत  तळहातावर  प्राण  घेऊन  झगडणाऱ्या  क्रांतीज्योती  सावित्रीबाई  यांच्या  जयंती   निमित्त  त्यांच्या  कार्याचा  धावता  आढावा   घेत   त्याच्या  पवित्र  स्मृतीस  प्रणाम  करण्याचा  हा  अल्पसा  प्रयत्न!!!!

आज  स्वतंत्र  भारताच्या  राष्ट्रपतीपदावर   प्रतिभाताई  पाटील  मोठ्या  दिमाखात  विराजमान  आहेत. १८०  वर्षापूर्वी  महात्मा  फुले  आणि  सावित्रीबाई  फुले  यांनी  सुरु  केलेल्या  भिडेवाड्यातील  पहिल्या  मुलींच्या  शाळेला  आलेले  हे  एक  मधुर  फळ  होय.  आज  सभोवताली  नजर  टाकलीत  तर  स्त्रियांनी  सर्वच  क्षेत्रात  आपली  क्षमता  सिद्ध  करून  दाखविली  आहे.  त्या  पुरुषांच्या  बरोबरीनेच  नव्हे  तर  दोन  पावले  पुढे  राहून  काम  करताना  दिसतात. हि  कमळ  केली  आहे   दूरदृष्टीच्या   ज्योतिबा  आणि  सावित्रीबाई   फुले  यांनी!


१९  व्या  शतकाचे  दुसरे  दशक ; मराठी  राज्य  बुडालेले. पुरुषांच्या   चंगीभंगी  चाळ्यांनी   स्त्रियांना   समाजात  वावरणे  हि  अशक्य  झालेले , मुलींची  पाळण्यातच  लग्न  लाऊन  देणारे   आई -बाप , लग्न  म्हणजे  काय  हे  कळायच्या  आतंच  जर  मुलीचा  नवरा  मृत  झाला  तर  जन्मभर  काबाडकष्ट , अपमान  सोसत  एकत्र  कुटुंबात  ह्या  कोवळ्या  बालविधवेने   पिचत  पडायचे. अशा  स्थितीतच   कुणा  पुरुष  नातेवाईकाच्या  वाकड्या  नजरेची  शिकार  बनून  गर्भ  राहिला  तर  त्याचा  सारा  दोष  पुन्हा  ह्या  निष्पाप  मुलीच्याच  माथी. मग  समाजाच्या  दृष्टीने  झालेले  आपले  काळे  तोंड   लपविण्यासाठी  त्या  कोवळ्या   मुलीना  नदी  – विहिरीत  जीव  देण्यापलीकडे  दुसरा  मार्ग  नसे. ब्राम्हण  समजत  तर  विधवेचे  सुंदर  केस  कापून  तिला  विद्रूप  केले  जाई, काय  म्हणे  तर  तिला  सोवळी  केली  पती  मेल्यावर  सती  जायला  हि  भाग  पाडीत.

खंडोजी  नेवासे  आणि  लक्ष्मी  नेवासे  यांच्या  पोटी  ३  January १८३१ रोजी जन्मलेल्या   सावित्रीबींचे  त्या  काळातील  प्रथेनुसार  वयाच्या  ९ व्या  वर्षी  ज्योतिबा  फुले  यांच्याशी  विवाह  झाला . लग्नानंतर   ज्योतीबांनी  त्यांना  शिकण्याची  आवड  लावली  आणि  त्यांनी  हि  मन:पूर्वक  अभ्यास  करीत  चौथी ची  परीक्षा  उत्तीर्ण  केली. सगुण बाईला   घेऊन  त्यांनी  १८४७  सालीच  ज्ञानदानाच्या  कार्याला  सुरुवात  केली.


१  January १८४८  चा  दिवस  उजाडला . पुण्याला  भिडेवाड्यात  देशातील  पहिली  मुलींची  शाळा  सुरु  झाली . घनघोर  अंधारात  ज्ञानाचा  दीप  उजळला ! अन्यायाच्या  छाताडावर  स्त्रीने  पहिला  वार  केला. क्रांतीच्या  नव्या  पर्वबरोबरच  समजा कंटकांचा   त्रास  सुरु  झाला . त्यांनी  फुले  दाम्पत्याला  छालायला  सुरुवात  केली . त्यांच्या  अंगावर  शेंगोळे  फेकले  जात , आचकट -विचकट  शिव्या  दिल्या  जात , चारित्र्याबद्दल  शंशय  घेत . पण  हा  सगळा  छळ  सोसून हि   त्या  मुलीने  आपले  शिक्षणाचे  कार्य  अविरत  चालूच  ठेवले. म्हणूनच  आज  पहिल्या  भारतीय  शिक्षिका  म्हणून  त्यांचे  नाव  घेतले  जाते.
लवकरच  क्षुद्र  – अतिक्षुद्र  समजल्या  जाणाऱ्या  समाजासाठी  प्रौढ  शिक्षण  देणारी  शाळा  सुरु  केली . शिक्षण  हेच  दलित  उद्धाराचे  साधन  आहे  हे  नेमके  ओळखून  शिक्षण  प्रारंभ  केला.  फुले  दाम्पत्याने  “Native Female School” आणि  “The Society for Pramoting Edcation” अशा  संस्था  स्थापन  karun पुणे  परिसरात  शिक्षण  संस्थांचे   जाले  निर्माण  केले . विद्यार्थ्यांची  गळती  थांबावी  म्हणून  त्यांनी  “प्रोत्साहन  भत्ता ” आणि  “आवडेल  ते  शिक्षण ” अशा  अभिनव  कल्पना  राबवल्या . अभिरुची  संवर्धन  , चारित्र्याची  जडण -घडण  यावर  या  शाळातून  भर  दिला  जाई . सरकारी  शाळांपेक्षा  या  शाळांची  संख्या  म्हणूनच  १०  पटींनी  अधिक  होती .  शिवाय  परीक्षांमध्ये  हि  फुले  यांच्या  शाळेतील  मुळीच  पुढे  होत्या. फुले   दाम्पत्याच्या    या  महान  कार्याची  दाखल  घेऊन  १८५२  मध्ये  British Government ने  त्यांचा  खास  सत्कार  केला.

सावित्रीबाई  अष्टपैलू    व्यक्तिमत्वाच्या  होत्या  त्या  शिक्षिका  होत्या , लेखिका  होत्या , समाजसेविका  होत्या  आणि  पिडीत  व  दलितांच्या  माता  होत्या. तसेच  त्या  उत्तम  कवयत्री  हि  होत्या. शिक्षणा  सोबत  ह्या  दाम्पत्याने  जातीभेद  निर्मुलन  आणि  अनिष्ट   प्रथांचे  निर्मुलन  केले . तसेच  बालहत्या   प्रतिबंध  गृहाची  स्थापना  केली, एका  विधवेच्या  मुलाला  दत्तक  घेऊन  त्याला  डॉक्टर  बनविले  व  जातीबाहेर  विवाह  लावून  दिला 

ज्योतीबांच्या  मृत्युनंतर   हि  त्यांनी  आपले  कार्य  अविरत  चालूच  ठेवले . १८९७  साली  आलेल्या  plague च्या  साथीच्या  वेळी  रोग्यांची  शेव  केली  व  दुर्दैवाने  त्याच  plague ची  लागण  होऊन  १०  March १८९७  रोजी  हि  क्रांतीज्योत  मालवली  पण  त्यांनी  प्रज्वलित  केलेल्या  हजारो  मशाली  आजही  पेटत्या  आहेत  अनि  विश्वाच्या  शेवटापर्यंत  पेटत्या  राहणर  आहेत. त्या  जर  नसत्या  तर  कदाचित  हा  लेख  लिहिणारी  मी कुठे  असती  ह्याची  कल्पना  हि  करवत   नाही  तेव्हा  त्या  क्रांतीज्योतीला  मनाचा  मुजरा  !!!


~●๋•ηινє∂ιтα ραтιℓ ●๋• 
▐ ■ αттιтυ∂є ιѕ α ℓιттℓє тнιηg тнαт мαкєѕ α вιg ∂郃єяєη¢є■▐

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